मरने के नाम से जो रखते थे होठों पे उंगलियां,
अफसोस वही लोग मेरे दिल के कातिल निकले|
आज भी प्यारी है मुझे तेरी हर निशानी,
फिर चाहे वो दिल का दर्द हो या आँखो का पानी।
मेरे मुन्सिफ को मगर, ये भी तो मंज़ूर न था,
दिल ने इन्साफ ही माँगा था, कुछ ईनाम नहीं|
अये मौत तुझे तो गले लगा लूँगा बस जरा तो ठहर,
है हसरत दिल की तुझसे पहले उसे गले लगाने की|
हर किसी के हाथ मैं बिक जाने को हम तैयार नहीं,
यह मेरा दिल है तेरे शहर का अख़बार नहीं|
हमारे महफिल में लोग बिन बुलाये आते है क्यू,
की यहाँ स्वागत में फूल नहीं दिल बिछाये जाते है|
आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया,
दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया|
तुम भी अच्छे … तुम्हारी वफ़ा भी अच्छी,
बुरे तो हम है जिनका दिल नहीं लगता तुम्हारे बिना|
दिल मेरा भी कम खूबसूरत तो न था,
मगर मरने वाले हर बार सूरत पे ही मरे|
हम तो पागल है जो शायरी में ही दिल की बात कह देते है,
लोग तो गीता पे हाथ रखके भी सच नहीं बोलते|
वही हुआ न तेरा दिल, भर गया मुझसे,
कहा था न ये मोहब्बत नहीं हैं, जो तुम करती हो|
मोहब्बत रोग है दिल का इसे दिल पे ही छोड़ दो,
दिमाग को अगर बचा लो तो भी गनीमत हो!!
आज भी एक सवाल छिपा है.. दिल के किसी कोने मैं,
की क्या कमी रह गईथी तेरा होने में|
इश्क की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही,
दर्द कम हो कि ज्यादा हो, मगर हो तो सही।
मौजूद थी अभी उदासी रात की,
बहला ही था दिल ज़रा सा के फ़िर भोर आ गयी|
अफसोस वही लोग मेरे दिल के कातिल निकले|
आज भी प्यारी है मुझे तेरी हर निशानी,
फिर चाहे वो दिल का दर्द हो या आँखो का पानी।
मेरे मुन्सिफ को मगर, ये भी तो मंज़ूर न था,
दिल ने इन्साफ ही माँगा था, कुछ ईनाम नहीं|
अये मौत तुझे तो गले लगा लूँगा बस जरा तो ठहर,
है हसरत दिल की तुझसे पहले उसे गले लगाने की|
हर किसी के हाथ मैं बिक जाने को हम तैयार नहीं,
यह मेरा दिल है तेरे शहर का अख़बार नहीं|
हमारे महफिल में लोग बिन बुलाये आते है क्यू,
की यहाँ स्वागत में फूल नहीं दिल बिछाये जाते है|
आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया,
दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया|
तुम भी अच्छे … तुम्हारी वफ़ा भी अच्छी,
बुरे तो हम है जिनका दिल नहीं लगता तुम्हारे बिना|
दिल मेरा भी कम खूबसूरत तो न था,
मगर मरने वाले हर बार सूरत पे ही मरे|
हम तो पागल है जो शायरी में ही दिल की बात कह देते है,
लोग तो गीता पे हाथ रखके भी सच नहीं बोलते|
वही हुआ न तेरा दिल, भर गया मुझसे,
कहा था न ये मोहब्बत नहीं हैं, जो तुम करती हो|
मोहब्बत रोग है दिल का इसे दिल पे ही छोड़ दो,
दिमाग को अगर बचा लो तो भी गनीमत हो!!
आज भी एक सवाल छिपा है.. दिल के किसी कोने मैं,
की क्या कमी रह गईथी तेरा होने में|
इश्क की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही,
दर्द कम हो कि ज्यादा हो, मगर हो तो सही।
मौजूद थी अभी उदासी रात की,
बहला ही था दिल ज़रा सा के फ़िर भोर आ गयी|

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