अच्छा लगता हैं तेरा नाम मेरे नाम के साथ,
जैसे कोई खूबसूरत सुबह जुड़ी हो, किसी हसीन शाम के साथ!
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो।
तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी,
एक हम है कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे|
जब कागज़ पर लिखा मैंने माँ का नाम,
कलम अदब से बोल उठी हो गए चारों धाम!!
गुमनामी का अँधेरा कुछ इस तरह छा गया है,
की दास्ताँ बन के जीना भी हमे रास आ गया है।
बात मुक्कदर पे आ के रुकी है वर्ना,
कोई कसर तो न छोड़ी थी तुझे चाहने में!
हजारों चेहरों में एक तुम ही पर मर मिटे थे,
वरना.. ना चाहतों की कमी थी और ना चाहने वालों की!
रोना ही है ज़िन्दगी तो हँसाया क्यो,
जाना था दूर तो नज़दीक़ आया ही कयो|
हँसी यूँ ही नहीं आई है इस ख़ामोश चेहरे पर,
कई ज़ख्मों को सीने में दबाकर रख दिया हमने|
खामोश बैठें तो वो कहते हैं उदासी अच्छी नहीं,
ज़रा सा हँस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं।
ठहर सके जो.. लबों पे हमारे,
हँसी के सिवा, है मजाल किसकी|
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं,
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं!!
किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह हैं,
अल्फ़ाज़ से भरपूर मगर ख़ामोश!!
ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए।
तुम रख न सकोगे, मेरा तोहफा संभालकर,
वरना मैं अभी दे दूँ, जिस्म से रूह निकालकर!
जैसे कोई खूबसूरत सुबह जुड़ी हो, किसी हसीन शाम के साथ!
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो।
तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी,
एक हम है कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे|
जब कागज़ पर लिखा मैंने माँ का नाम,
कलम अदब से बोल उठी हो गए चारों धाम!!
गुमनामी का अँधेरा कुछ इस तरह छा गया है,
की दास्ताँ बन के जीना भी हमे रास आ गया है।
बात मुक्कदर पे आ के रुकी है वर्ना,
कोई कसर तो न छोड़ी थी तुझे चाहने में!
हजारों चेहरों में एक तुम ही पर मर मिटे थे,
वरना.. ना चाहतों की कमी थी और ना चाहने वालों की!
रोना ही है ज़िन्दगी तो हँसाया क्यो,
जाना था दूर तो नज़दीक़ आया ही कयो|
हँसी यूँ ही नहीं आई है इस ख़ामोश चेहरे पर,
कई ज़ख्मों को सीने में दबाकर रख दिया हमने|
खामोश बैठें तो वो कहते हैं उदासी अच्छी नहीं,
ज़रा सा हँस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं।
ठहर सके जो.. लबों पे हमारे,
हँसी के सिवा, है मजाल किसकी|
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं,
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं!!
किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह हैं,
अल्फ़ाज़ से भरपूर मगर ख़ामोश!!
ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए।
तुम रख न सकोगे, मेरा तोहफा संभालकर,
वरना मैं अभी दे दूँ, जिस्म से रूह निकालकर!

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