Wo mere masoom dil ki sda thi,
Khuda se maangi hui koi dua thi,
Apni zindgi se badh kar chaha usey,
Yeh mere pyar ki inteha thi,
Salaam bhejti thi mujhey hawa ki zubani,
Yun lagta tha jaise wo baad-e-saba thi,
Kya kahon uski sheerni e guftaar ka,
Kaano mein ras gholti uski nida thi,
Main he uska sath na nibha saka,
Varna wo ik moort-e-wafa thi,
Na jane kaise bhulaunga usey asghar,
Jis ki har ada zamane se juda thi…
– M. Asghar Mirpuri
वो मेरे मासूम दिल की सदा थी,
खुदा से माँगी हुई कोई दुआ थी,
अपनी ज़िंदगी से बढ़ कर चाहा उसे,
यह मेरे प्यार की इंतेहा थी,
सलाम भेजती थी मुझे हवा की ज़ुबानी,
यूँ लगता था जैसे वो बाद-ए-सबा थी,
क्या कहूँ उसकी शेरनी-ए-गुफ़्तार का,
कानो में रस घोलती उसकी निदा थी,
मैं ही उसका साथ ना निभा सका,
वरना वो इक मूर्त-ए-वफ़ा थी,
ना जाने कैसे भूलूंगा उसे असग़र,
जिस की हर अदा ज़माने से जुदा थी…
– म. असग़र मीरपुरी
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